10 September : एक डरावना विमान अपहरण

एक डरावना विमान अपहरण - रहस्य जानिए अभी

दिल्ली एयरपोर्ट की उस सुबह हर चीज़ बिल्कुल सामान्य थी। लोग कतार में खड़े थे, बच्चे खिड़की से बाहर जहाज़ देखकर खिलखिला रहे थे और पायलट व क्रू मुस्कुराते हुए यात्रियों का स्वागत कर रहे थे। इंडियन एयरलाइंस का बोइंग 737 उड़ान भरने को तैयार था, और यात्रियों को लग रहा था कि यह सफ़र उनके लिए बस एक और साधारण यात्रा होगी। पर किसी ने भी सोचा नहीं था कि कुछ ही घंटों में यह उड़ान इतिहास की सबसे डरावनी दास्तानों में से एक बन जाएगी।

जैसे ही विमान आसमान की ऊँचाई छूता है, एयरहोस्टेस मुस्कुराकर चाय और कॉफ़ी परोसती हैं। लोग अख़बार पढ़ने लगते हैं, बच्चे बादलों को देखकर खुश होते हैं। माहौल बिलकुल शांत था… तभी अचानक पीछे से सीट खिसकने की आवाज़ आई। चार आदमी खड़े हो चुके थे। उनकी आँखों में शिकारी जैसी चमक और हाथों में पिस्तौल थी। उनमें से एक, ज़ोरावर सिंह, ठंडी आवाज़ में गरजा—“सुनो सब लोग! ये विमान अब हमारे कब्ज़े में है। कोई भी हरकत की, तो गोली यहीं चलेगी।”

पूरा जहाज़ सन्नाटे में डूब गया। मासूम बच्चे रोने लगे। एक माँ अपने बच्चे को सीने से लगाए फुसफुसाई—“चुप रहो बेटा… सब ठीक होगा।” लेकिन सबके दिलों में यही सवाल गूंज रहा था—क्या सचमुच सब ठीक होगा?

ज़ोरावर ने कॉकपिट के दरवाज़े पर ठोकर मारी और पायलट पर बंदूक तान दी। “अब ये जहाज़ कराची जाएगा। समझे?” पायलट के माथे पर पसीना छलक आया। उसने धीमी आवाज़ में कुछ कहना चाहा, मगर ज़ोरावर बीच में ही गरजा—“बहाने नहीं! कराची की ओर उड़ाओ।” मजबूरी में पायलट ने कंट्रोल्स मोड़ दिए। यात्रियों की सांसें थम चुकी थीं।

कराची की ओर बढ़ते हर मिनट यात्रियों को मौत के और करीब महसूस हो रहा था। कोई आँखें बंद कर प्रार्थना कर रहा था, कोई खिड़की से बाहर घूर रहा था, तो कोई रोते हुए अपनी आखिरी दुआ माँग रहा था। बच्चे बिलख रहे थे, और अपहरणकर्ताओं की ठंडी निगाहें सब पर जमी थीं।

कराची एयरपोर्ट की रोशनियाँ नज़र आईं। विमान उतरा और बाहर पाकिस्तानी सैनिकों की गाड़ियों की आवाज़ गूंजने लगी। विमान को चारों ओर से घेर लिया गया। अंदर बैठे लोग खिड़कियों से बाहर झाँकते रहे—क्या ये अंत है या अब बचने की उम्मीद है?

ज़ोरावर ने हंसते हुए कहा—“देख लो, अब पूरा पाकिस्तान हमारा है। हमें कोई नहीं रोक सकता।” लेकिन उसके चेहरे पर छिपी घबराहट साफ झलक रही थी। घंटों तक पाकिस्तानी अधिकारियों और अपहरणकर्ताओं के बीच वार्ता चलती रही। अंदर बैठे यात्री हर सेकंड मौत का इंतज़ार कर रहे थे।

अचानक बाहर धमक की आवाज़ हुई। दरवाज़ा खुला और पाकिस्तानी कमांडो अंदर घुस आए। गोलियों की आवाज़ गूंजी, यात्री दहशत से झुक गए। कुछ ही पलों में ज़ोरावर और उसके साथी हथकड़ियों में जकड़ दिए गए।

अंदर बैठे यात्रियों की आँखों में आँसू छलक पड़े। किसी ने भगवान का धन्यवाद कहा, कोई अपने बच्चों को गले लगाकर रो पड़ा, और कोई चुपचाप आसमान को देखता रहा जैसे कह रहा हो—“ज़िंदगी कितनी कीमती है।”

उस रात 10 सितंबर 1976 सिर्फ़ एक तारीख़ नहीं रही—वह इतिहास का वह पन्ना बन गई जिसने दुनिया को दिखा दिया कि मौत सामने हो, फिर भी उम्मीद की लौ बुझनी नहीं चाहिए।

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